
सावन आते ही पूरे भारत में शिवभक्ति का माहौल बन जाता है। मगर काशी छोड़कर बाबा विश्वनाथ सावन में कहाँ जाते हैं? — यह प्रश्न हर शिवभक्त के मन में सावन आते ही उठता है। काशी, जो स्वयं महादेव की नगरी मानी जाती है, वहां के श्रद्धालु इस समय बाबा को काशी में नहीं बल्कि सारंगनाथ मंदिर में जल चढ़ाते हैं। आखिर क्यों? यही जानने के लिए आइए इस रहस्यमयी परंपरा और पौराणिक कथा को विस्तार से समझते हैं।
👉 काशी छोड़कर बाबा विश्वनाथ सावन में कहाँ जाते हैं?
👉 सारंगनाथ कौन हैं?
👉 इस परंपरा का क्या रहस्य है?

🕉️ सावन में शिव उपासना का महत्व
सावन मास भगवान शिव का प्रिय महीना माना जाता है।
- इस माह में हर सोमवार को व्रत रखकर शिवलिंग पर जल चढ़ाना, बेलपत्र अर्पित करना विशेष फलदायक माना गया है।
- काशी में बाबा विश्वनाथ के मंदिर में भक्तों की अपार भीड़ लगती है… लेकिन सावन में यह दृश्य बदल जाता है।
- भक्त काशी के बाहर स्थित एक मंदिर में जाते हैं — सारंगनाथ मंदिर।

📜 काशी छोड़कर बाबा विश्वनाथ सावन में कहाँ जाते हैं? सारंगनाथ की ओर क्यों?
यह बड़ा सवाल है कि काशी छोड़कर बाबा विश्वनाथ सावन में कहाँ जाते हैं? आइए हम आपको बताते हैं कि काशी छोड़कर बाबा विश्वनाथ सावन में सारंगनाथ (या सारंगदेव) के पास जाते हैं। लेकिन क्यों? इसके पीछे एक प्राचीन पौराणिक कथा जुड़ी है, जो काशी खंड, लोकश्रुति और जनश्रुतियों में मिलती है।

🧬 कौन थे सारंगदेव / सारंगनाथ?
🔍 परिचय:
- सारंगनाथ, जिन्हें सारंगदेव भी कहा जाता है, माता पार्वती के भाई माने जाते हैं।
- उनकी उत्पत्ति, चरित्र और अस्तित्व को काशी की धार्मिक परंपरा में विशेष स्थान प्राप्त है।

📚 एक कथा अनुसार:
- जब माता पार्वती का विवाह शिव से हुआ और वे काशी में बस गईं,
- तब उनके भाई सारंगदेव उन्हें मिलने काशी आए।
- लेकिन शिव जी ने उन्हें विचित्र और तपस्वी रूप में देख, उचित आदर नहीं दिया।

😠 शिव और सारंगदेव के बीच हुआ विवाद
🧨 कथा का नाटकीय मोड़:
- सारंगदेव, माता पार्वती के सगे भाई, यह अपमान सह नहीं पाए।
- उन्होंने कहा – “आपने अपने ससुराल से आए एक अतिथि का सम्मान नहीं किया। अब मैं इस भूमि पर नहीं रहूँगा।”
- यह कहकर सारंगदेव काशी छोड़कर सारनाथ की ओर चले गए, और वहाँ जाकर तप करने लगे।

🙏 शिव की पश्चाताप भावना और प्रायश्चित
💔 पारिवारिक संवेदनशीलता:
- जब माता पार्वती को यह ज्ञात हुआ कि उनके भाई अपमानित होकर चले गए, तो उन्होंने भगवान शिव से नाराज़गी व्यक्त की।
- शिवजी ने अपने आचरण पर पश्चाताप किया।

🔱 समाधान:
- शिवजी ने निश्चय किया कि हर साल सावन में वे पार्वतीजी के भाई के पास खुद चलकर जाएँगे। अब आपको अपने प्रश्न का जवाब मिल गया होगा कि काशी छोड़कर बाबा विश्वनाथ सावन में कहाँ जाते हैं?
- इस भावना में पारिवारिक बंधन, क्षमा और पुनः मिलन की झलक है।

🛕 तभी से बनी परंपरा : सावन में शिवजी का सारंगनाथ प्रवास
📜 पौराणिक प्रभाव:
- तभी से यह परंपरा बनी कि सावन मास में बाबा विश्वनाथ काशी छोड़कर सारंगनाथ मंदिर चले जाते हैं।
- और काशी के श्रद्धालु वहाँ जाकर जल चढ़ाते हैं।
🕉️ आध्यात्मिक अर्थ:
- यह परंपरा सिखाती है कि ईश्वर भी रिश्तों की मर्यादा निभाते हैं। सामाज को रिश्तों की अहमियत समझाने के लिए काशी छोड़कर बाबा विश्वनाथ सावन में सारंगदेव के पास जाते हैं।

🚩काशी छोड़कर बाबा विश्वनाथ सावन में कहाँ जाते हैं: सारंगनाथ में जल चढ़ाने की परंपरा
✨ सारंगनाथ मंदिर:
- वाराणसी जिले में स्थित यह मंदिर सारनाथ क्षेत्र में स्थित है।
- यहाँ शिव सारंगधार महादेव के नाम से पूजे जाते हैं।
📿 भक्तों की मान्यता:
- सावन में जल वहीं चढ़ाया जाए जहाँ शिव वास्तव में वास करते हैं — और वह है सारंगनाथ।

🙌 भक्तों की यात्रा : एक कांवड़ जैसी भक्ति यात्रा
- सावन के सोमवार को काशी और आस-पास के गाँवों से लोग गंगा जल भरकर पैदल चलते हैं।
- “बोल बम” के नारों के साथ भक्त सारंगनाथ मंदिर पहुँचते हैं।
- यह यात्रा भावना, भक्ति और परंपरा से भरी होती है।

❓ 10. FAQ Section (SEO Schema Friendly)
❓ काशी छोड़कर बाबा विश्वनाथ सावन में कहाँ जाते हैं?
उत्तर: वे सावन में माता पार्वती के भाई सारंगनाथ के पास जाते हैं, जो काशी से बाहर स्थित सारनाथ में वास करते हैं।
❓ सारंगनाथ कौन थे?
उत्तर: सारंगनाथ, जिन्हें सारंगदेव भी कहा जाता है, माता पार्वती के भाई थे। एक अपमान के कारण वे काशी छोड़कर सारनाथ चले गए।
❓ क्या शिवजी हर सावन में सारंगनाथ के पास जाते हैं?
उत्तर: हाँ, परंपरा के अनुसार, भगवान शिव हर सावन में कुछ समय के लिए सारंगनाथ में निवास करते हैं।

📢 CTA (Call to Action)
क्या आपने कभी सारंगनाथ में बाबा को जल चढ़ाया है?
इस सावन में एक बार इस परंपरा को स्वयं अनुभव करें और जानें —
काशी छोड़कर बाबा विश्वनाथ सावन में कहाँ जाते हैं।
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🔚 निष्कर्ष : शिव, पार्वती और सारंगनाथ – आस्था का त्रिकोण
काशी छोड़कर बाबा विश्वनाथ सावन में कहाँ जाते हैं — यह प्रश्न केवल पौराणिक नहीं, पारिवारिक और मानवीय रिश्तों की गहराई से जुड़ा है। जब ईश्वर भी अपने किए पर पछताते हैं, क्षमा माँगते हैं और रिश्तों को निभाते हैं, तो भक्तों के लिए यह एक महान सीख बन जाती है।
सारंगनाथ सिर्फ एक मंदिर नहीं, यह भाई-बहन के रिश्ते, क्षमा, और आत्मा की शांति का प्रतीक है।
सावन के महीने में जब बाबा विश्वनाथ काशी छोड़कर सारंगनाथ चले जाते हैं, तो भक्तों की भीड़ सारंगनाथ मंदिर में उमड़ पड़ती है। सारनाथ, जो कि एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है, इसके बारे में अधिक जानें Incredible India की साइट पर।